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🌲 🌺 🌲 🌺 🌲 #ग़ज़ल 🌲 🌺 🌲 🌺 🌲
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फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था,,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था..
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार-सू,,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था..
रात भर पिछली सी आहट कान में आती रही,,
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था..
मैं तिरी सूरत लिए सारे ज़माने में फिरा,,
सारी दुनिया में मगर कोई तिरे जैसा न था..
आज मिलने की ख़ुशी में सिर्फ़ मैं जागा नहीं,,
तेरी आँखों से भी लगता है कि तू सोया न था..
ये सभी वीरानियाँ उस के जुदा होने से थीं,,
आँख धुँदलाई हुई थी शहर धुँदलाया न था..
सैंकड़ों तूफ़ान लफ़्ज़ों में दबे थे ज़ेर-ए-लब,,
एक पत्थर था ख़मोशी का कि जो हटता न था..
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम',,
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था..
मस्लहत ने अजनबी हम को बनाया था 'अदीम',,
वर्ना कब इक दूसरे को हम ने पहचाना न था..